मत्स्येन्द्रासन को फिश पोज भी कहते हैं। संस्कृत में मत्स्या को मछली और इंद्रा को राजा कहते हैं। यह हठ आसने के 12 योगासन में से एक है। इसे कई तरह से किया जा सकता है। रीढ़ की हड्डी के लिए यह योगासन बहुत फायदेमंद होता है। जो लोग योग की शुरुआत कर रहे होते हैं उनके लिए यह योगासन थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन एक बार जब आप मत्स्येन्द्रासन करने लगते हैं तो आप इसे कई तकनीक अपनाकर कर सकते हैं। तो आइए आपको मत्स्येन्द्रासन करने की विधि और उससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताते हैं। [ये भी पढ़ें: अर्ध भुजंगासन कैसे किया जाता है]
मत्स्येन्द्रासन करने की विधि:
- इसे करने के लिए सबसे पहले पैर सीधे करके बैठ जाए। अब दाएं पैर को मोड़ते हुए बाएं पैर की तरफ ले जाएं।
- अब बाएं पैर को मोड़ते हुए कूल्हों की तरफ ले जाएं। इसे करते समय बिल्कुल सीधे बैठें।
- इसे करते समय जो पैर मोड़ा है उसके विपरीत हाथ का इस्तेमाल करें। जैसे आपने बाएं पैर को मोड़ा था तो दाएं हाथ को उठाएं और बाएं हाथ के घुटने पर मोड़कर रखें।
- अगर आपकी फ्लैक्सीबिलिटी अच्छी है तो आप अपने पैर को भी पकड़ सकते हैं।
- ऐसा करने के बाद अपने शरीर को पीछे की तरफ घुमाएं। उसके बाद सांस लें और छोड़ें।
- इस आसन को करते समय 30 सेकेंड तक इसी मुद्रा में बैठें।
मत्स्येन्द्रासन करने के फायदे:
- मत्स्येन्द्रासन ब्लड प्रेशर को नियमित करने में मदद करता है।
- किडनी और लिवर को मसाज करने में फायदेमंद होता है।
- लिवर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने में मदद करता है।
- डायबिटीज का इलाज करने में मददगार होता है।
- कमर दर्द से राहत दिलाने और रीढ़ की हड्डी को स्वस्थ रखने में मदद करता है। [ये भी पढ़ें: सूर्य नमस्कार करने की विधि और उसके स्वास्थ्य लाभ]
मत्स्येन्द्रासन करते समय बरते सावधानियां:
- मत्स्येन्द्रासन की मुद्रा से बाहर आने के लिए सांस लें और सीधे होते हुए अपनी पुरानी मुद्रा में आएं।
- प्रेग्नेंसी और मासिक धर्म के दौरान इस योगासन को नहीं करना चाहिए।
- हृदय, दिमाग में अगर सर्जरी हुई है तो मत्स्येन्द्रासन करने से बचना चाहिए। [ये भी पढ़ें: भूनमनासन करने की विधि और इसके स्वास्थ्य लाभ]