
तनाव मानसिक अवस्था है जो आपके सोचने-विचारने, काम करने और अन्य चीजों को मैनेज करने की क्षमता पर प्रभाव डालती है। क्रोनिक स्ट्रेस को लंबे समय तक रहने वाला तनाव या दीर्घकालिक तनाव भी कहते हैं। हर व्यक्ति पर इस तरह के तनाव का प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। लंबे समय तक रहने वाला तनाव आपके दिमाग पर नकारात्मक रुप से असर डालता है। साल 2015 के आंकड़ो के अनुसार, भारत में वर्कप्लेस स्ट्रेस के मामलों में ध्यान देने योग्य वृद्धि हुई है। करीब 16 हजार लोगों पर किए गए एक सर्वे में पता चला है कि भारत के 51 प्रतिशत कर्मचारियों में पिछले सालों में तनाव के स्तर में बढ़ोतरी हुई है।
क्या है क्रोनिक स्ट्रेस:
तनाव या स्ट्रेस दो प्रकार से हो सकता है- एक्यूट स्ट्रेस और क्रोनिक स्ट्रेस। सभी तरह के तनाव आपके जीवन पर बुरा असर नहीं डालते हैं। क्रोनिक स्ट्रेस(दीर्घकालिक तनाव या लंबे समय तक रहने वाला तनाव) के दौरान आपके शरीर में स्ट्रेस हार्मोन यानि कोर्टिसोल की मात्रा बढ़ने लगती है जो आपके कार्य करने की क्षमता पर प्रभाव डालती है और साथ ही इससे आपको कई तरह के मूड डिसऑर्डर और अन्य मानसिक विकार होने का खतरा रहता है।
क्रोनिक स्ट्रेस का दिमाग पर प्रभाव:
लंबे समय तक रहने वाले तनाव की वजह से आपका शरीर सही तरीके से काम नहीं करता जिससे कार्य प्रणाली प्रभावित होती है और कई तरह की बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। तनाव हमारे दिमाग को भी प्रभावित करता है। इस दौरान आपको याद्दाश्त कम होने की परेशानी, चिंता और घबराहट जैसे लक्षण दिख सकते हैं। हालांकि ये आपका ध्यान नहीं खींचते लेकिन इनसे होने वाले साइड इफेक्टस पर आपका ध्यान जरुर जाता है। [ये भी पढ़ें: जानिए कैसे आपके शरीर को प्रभावित करता है तनाव]
तनाव ब्रेन सेल्स को नष्ट करता है:
तनाव की वजह से कोर्टिसोल हार्मोन का उत्पादन होता है जिससे न्यूरोट्रांसमीटर ग्लूटामेट की मात्रा में वृद्धि होती है। ग्लूटामेट मुक्त कण (free radicals) पैदा करते हैं जिन्हें अवांछित ऑक्सीजन अणु भी कहा जाता है। ये अणु ब्रेन सेल्स को क्षति पहुंचाते हैं। मुक्त अणु ब्रेन सेल वॉल में छेद करते हैं जिसके कारण सेल्स टूटने लगती है और नष्ट हो जाती है।
तनाव चिंता और डर को बढ़ाता है:
तनाव का प्रभाव एमिगडला पर पड़ता है। एमिगडला आपके दिमाग का फियर सेंटर(डर का केंद्र) है। आपके मस्तिष्क के इस हिस्से में तनाव की वजह से न्यूरल कनेक्शन की संख्या, आकार और गतिविधियां बढ़ जाती है, जिसके कारण आप अधिक डरने लगते हैं। साथ ही यह चिंता की भावना को भी बढ़ाता है। [ये भी पढ़ें: कैसे तनाव कर सकता है आपकी वर्क परफॉर्मेंस को प्रभावित]
तनाव नई ब्रेन सेल्स के उत्पादन को रोकता है:
आपके दिमाग में हर रोज कुछ कोशिकाएं नष्ट हो जाती है और हर रोज यह नई कोशिकाओं का निर्माण भी करता है। ब्रेन-ड्राइव्ड न्यूरोट्रॉफिक फेक्टर(बीडीएनएफ) एक तरह का प्रोटीन है जो कि पुरानी कोशिकाओं को स्वस्थ रखता है और नई कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है। क्रोनिक तनाव की स्थिति में बीडीएनएफ प्रोटीन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोर्टिसोल हार्मोन बीडीएनएफ के उत्पादन को कम करता है जिससे कि प्रत्यक्ष तौर पर नई ब्रेन सेल्स का उत्पादन भी कम हो जाता है।
तनाव क्रिटिकल ब्रेन कैमिकल को घटाता है:
आपके ब्रेन सेल्स एक केमिकल के जरिए सम्पर्क करते हैं जिसे न्यूरोट्रांसमीटर कहते हैं। क्रोनिक तनाव क्रिटिकल न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल के स्तर को घटाता है, विशेष रूप से सेरोटोनिन और डोपामाइन। इस तरह के केमिकल में किसी एक का भी स्तर घटने से आपको डिप्रेशन यानि अवसाद होने का खतरा बढ़ जाता है।
तनाव कई तरह की मानसिक बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है:
ऐसे कई मानसिक विकार है जिनके पीछे के कारणों का पता नहीं लग सका है। अगर उन पर रिसर्च किया जाता है तो पता चलता है कि इनके पीछे कई कॉम्प्लेक्स फैक्टर होते हैं। हाल ही के शोधों में पाया गया है कि क्रोनिक तनाव से ग्रस्त लोगों के दिमाग में बाहरी बदलाव देखे गए हैं। इसके कारण आपको कई तरह के मानसिक रोग जैसे- चिंता और पैनिक डिसऑर्डर, अवसाद, स्क्रीज़ोफ्रेनिया, बायपोलर डिसऑर्डर, नशीले पदार्थ और शराब की लत आदि होने का खतरा होता है।