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Navratri special: नवरात्रि के शुभ दिनों में अधिकतर लोग अपने घर मां दुर्गा को बेटी के रुप में लेकर आते हैं और उनका स्वागत करते हैं। नौ दिनों तक मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है और दसवें दिन विसर्जन किया जाता है। हिंदू धर्म के मुख्य त्यौहारों में से एक दुर्गा पूजा महोत्सव बहुत जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। चौथे दिन दुर्गा मां का चौथा रुप कुष्मांडा देवी की आराधना की जाती है। कुष्मांडा देवी ने ब्रह्मांड को उतपन्न किया है इसीलिए इन्हें कुष्मांडा नाम से पूजा जाता है। अष्टभुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। कुष्मांडा देवी को तेज और प्रताप का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं चौथे दिन इनकी पूजा का क्यों और कैसे की जाती है। [ये भी पढ़ें: नवरात्रि स्पेशल: तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की आराधना क्यों की जाती है]
Navratri special: चौंथ दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा क्यों की जाती है
इनकी पूजा क्यों की जाती है
नवरात्र के चौथे दिन का महत्व
पूजा की विधि
पूजा का मंत्र
अर्थ
इनकी पूजा क्यों की जाती है
माता कुष्मंडा आध्यात्मिक अभ्यास में अनाहत चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। माता कुष्मांड का दिव्य आशीर्वाद आपको अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है। वह आपके जीवन से सभी बाधाओं और परेशानियों को दूर करती है और आपको जीवन में सभी तरह के दुखों से छुटकारा दिलाता है। मां आपके जीवन में सद्भाव स्थापित करता है।
नवरात्रि के चौथे दिन का महत्व
नवरात्रि के चौथे दिन का साधक की जिंदगी में अत्यंत महत्व है देवी कुष्मांडा जो ब्रह्मांड की रचयिता है उनकी आराधना से साधक को ब्रह्मांड में निहित ज्ञान की प्राप्ति होती है। कुष्मांडा देवी में ध्यान लगाने से व्यक्ति को जीवन में सही मार्गदर्शन मिलता है। देवी का यह रुप उर्जा का स्रोत है। इनके चेहरे पर तेज और प्रताप होता है। मान्यता है कि सूर्य को तेज मां कुष्मांडा से ही मिलता है। इसलिए देवी कुष्मांडा आपके जीवन में अच्छी उर्जा का संचार करती है। साथ ही यह दिन आपको समरसता का महत्व समझाता है। [ये भी पढ़ें: नवरात्रि स्पेशल: दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व]
साधक देवी कुष्मांडा की आराधना से अनहाता चक्र में प्रवेश करता है। यह चक्र मानव शरीर में दिल, फेफड़े, बाहें, ऊपरी पीठ, कंधे और पसलियों के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होता है।
पूजा की विधि
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा करने के लिए पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति की स्थापना करें। इनके साथ श्री गणेश और मां लश्र्मी की पूजा का महत्व माना जाता है। मूर्ति स्थापित करके इन्हें गंगा जल से स्नान कराएं। इसके बाद पूजा-अर्चना शुरु करें। धूप-दीप आदि के साथ मंत्र का जाप करें और देवी के भव्य रुप में ध्यान लगाएं। इस दिन साधक को हरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूजा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनम:।।
अर्थ: हे मां! आप सभी जगह विराजमान है। कुष्मांडा के रूप में प्रसिद्ध, हे अम्बे, आपको मेरा बार-बार नमस्कार है। मैं आपको प्रणाम करता हूं। [ये भी पढ़ें: नवरात्र स्पेशल: पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा का महत्व]